हरियाणा में ‘आया राम-गया राम’ की कहानी: दल-बदल की राजनीति का एक महत्वपूर्ण अध्याय
भारतीय राजनीति में अक्सर शब्दों और मुहावरों का इस्तेमाल होता है, जो किसी विशिष्ट घटना या प्रवृत्ति को दर्शाते हैं। इनमें से एक प्रमुख और लोकप्रिय मुहावरा है – ‘आया राम-गया राम।’ यह मुहावरा तब इस्तेमाल किया जाता है जब कोई नेता बार-बार पार्टी बदलता है। हालांकि, इस मुहावरे की उत्पत्ति का कोई ठोस प्रमाण नहीं है, लेकिन इसका संबंध हरियाणा की राजनीति से जुड़ा हुआ है और यह भारतीय राजनीति के एक महत्वपूर्ण घटना की ओर इशारा करता है। इस ब्लॉग में हम विस्तार से जानेंगे कि ‘आया राम-गया राम’ का मुहावरा कैसे उभरा, इसके ऐतिहासिक संदर्भ क्या हैं, और इसके प्रभाव को समझेंगे।
‘आया राम-गया राम’ का जन्म:
‘आया राम-गया राम’ का मुहावरा भारतीय राजनीति के एक महत्वपूर्ण घटना से जुड़ा है, जो 1967 के हरियाणा विधानसभा चुनाव के बाद सामने आया था। हरियाणा के गठन के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव था और इसके परिणाम ने भारतीय राजनीति को गहरा प्रभावित किया।
1967 के हरियाणा विधानसभा चुनाव:
1967 में हरियाणा ने पंजाब से अलग होकर एक स्वतंत्र राज्य का गठन किया था। यह चुनाव हरियाणा के राजनीतिक परिदृश्य पर एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। इस चुनाव में हरियाणा के हसनपुर निर्वाचन क्षेत्र (अब होडल) से गया लाल ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की। गया लाल ने कांग्रेस के उम्मीदवार एम सिंह को 360 वोटों से हराया। गया लाल को 10,458 वोट मिले जबकि एम सिंह को 10,098 वोट मिले।
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गया लाल का दल-बदल:
गया लाल की जीत के बाद, राजनीति में एक बड़ा ट्विस्ट आया। जीत के कुछ ही दिनों बाद, गया लाल ने कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। यह घटना उस समय के लिए काफी चौंकाने वाली थी क्योंकि गया लाल ने पहले निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ा था और अब वह उसी पार्टी में शामिल हो गए जिसके खिलाफ उन्होंने चुनाव लड़ा था। लेकिन यह केवल शुरुआत थी।
दलबदल की राजनीति:
गया लाल के कांग्रेस में शामिल होने के बाद राजनीतिक माहौल में और भी बदलाव आया। हरियाणा विधानसभा में कांग्रेस के पास बहुमत था और भगवत दयाल शर्मा ने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। लेकिन उनकी सरकार केवल एक हफ्ते तक ही चल पाई। 12 कांग्रेस विधायकों ने दल-बदल कर दिया, जिससे कांग्रेस की सरकार गिर गई। इसके बाद, निर्दलीय विधायकों ने एक नई पार्टी संयुक्त मोर्चा (एसवीडी) का गठन किया, जिसका नेतृत्व राव बीरेंद्र सिंह ने किया।
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‘आया राम-गया राम’ की घटना:
गया लाल ने अपनी पार्टी बदलने का सिलसिला जारी रखा। उन्होंने एसवीडी में शामिल होने के बाद फिर से कांग्रेस में वापसी की और फिर से एसवीडी में शामिल हो गए। यह सब कुछ केवल नौ घंटे के भीतर हुआ। जब गया लाल एसवीडी में वापस आए, तब राव बीरेंद्र सिंह ने चंडीगढ़ में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “गया राम अब आया राम है।” इस बयान ने भारतीय राजनीति में ‘आया राम-गया राम’ का मुहावरा जन्म दिया।
राजनीतिक अस्थिरता और दल-बदल:
गया लाल की इस घटना ने हरियाणा की राजनीति में अस्थिरता को और बढ़ावा दिया। इसके बाद, हरियाणा में दल-बदल की राजनीति ने जोर पकड़ा। विधायकों और मंत्रियों ने अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के कारण एक पार्टी से दूसरी पार्टी में शामिल होने की प्रवृत्ति अपनाई। इस स्थिति ने राज्य में सरकारों के स्थायित्व को खतरे में डाल दिया।
1989 में वीपी सिंह की सरकार:
एक और महत्वपूर्ण उदाहरण है 1989 में वीपी सिंह की सरकार का। इस समय, हरियाणा के महम से विधायक देवी लाल को उपप्रधानमंत्री बनाया गया। यह पदवी मिलने के बाद, देवी लाल ने मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ दी थी। इस प्रकार, हरियाणा की राजनीति में दल-बदल की परंपरा ने एक नई दिशा दी।
दल-बदल विरोधी कानून का गठन:
गया लाल की दल-बदल की घटना और इसके परिणामस्वरूप भारतीय राजनीति में एक स्थिरता की आवश्यकता महसूस की गई। इससे निपटने के लिए 1985 में राजीव गांधी सरकार ने दल-बदल विरोधी कानून (Anti-Defection Law) पेश किया। इस कानून का उद्देश्य विधायकों और सांसदों को दल-बदल से रोकना और राजनीतिक स्थिरता सुनिश्चित करना था।
आधिकारिक कानून:
इस कानून के तहत, अगर कोई विधायक या सांसद अपनी पार्टी छोड़कर किसी दूसरी पार्टी में जाता है, तो उसकी सदस्यता समाप्त कर दी जाती है। यह कानून भारतीय संविधान के 52वें संशोधन के रूप में 1985 में लागू किया गया। हालांकि, यह कानून राजनीतिक दलों को किसी अन्य दल के साथ विलय करने की अनुमति भी देता है, बशर्ते कि कम से कम दो-तिहाई विधायक विलय के पक्ष में हों। इस प्रावधान के तहत दल-बदल विरोधी कानून लागू नहीं होता है।
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हरियाणा की राजनीति में दल-बदल का प्रभाव:
हरियाणा की राजनीति में ‘आया राम-गया राम’ की घटना ने कई बार राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित किया। 2014 के विधानसभा चुनावों में भी खाप पॉलिटिक्स और दल-बदल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद खापों का समर्थन टूट गया, और भाजपा को बड़ी जीत मिली। हालांकि, खापों ने भाजपा को हराने के लिए उम्मीदवारों का समर्थन किया, जिससे भाजपा को कुछ सीटों पर हार का सामना करना पड़ा।
पार्टी बदलने की प्रवृत्ति:
आज भी, भारतीय राजनीति में दल-बदल की प्रवृत्ति बनी हुई है। हालांकि दल-बदल विरोधी कानून ने इस पर नियंत्रण पाने की कोशिश की है, लेकिन नेताओं के व्यक्तिगत स्वार्थ और महत्वाकांक्षाएं कभी-कभी इस कानून को दरकिनार कर देती हैं। पार्टी बदलने की प्रवृत्ति से सरकारों की स्थिरता प्रभावित होती है और इससे राजनीतिक अस्थिरता बढ़ती है।
‘आया राम-गया राम’ का वर्तमान प्रभाव:
‘आया राम-गया राम’ की राजनीति ने भारतीय लोकतंत्र को एक गंभीर समस्या की ओर इंगित किया। आज भी, यह मुहावरा दल-बदल की राजनीति के एक महत्वपूर्ण उदाहरण के रूप में प्रयोग किया जाता है। हालांकि दल-बदल विरोधी कानून के कारण इस पर कुछ हद तक नियंत्रण पाया गया है, लेकिन राजनीति में स्थिरता बनाए रखना अब भी एक चुनौती है।
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