हरियाणा में ‘खाप पॉलिटिक्स’ का चुनावी समीकरण: कितने खाप, कौन प्रमुख चेहरे और किसका बिगड़ सकता है खेल?
हरियाणा की राजनीति में खाप पंचायतों का हमेशा से महत्वपूर्ण योगदान रहा है। खाप पंचायतें सामाजिक व्यवस्था में न्याय दिलाने और समुदायों को संगठित रखने का कार्य करती हैं, लेकिन समय-समय पर ये राजनीति में भी गहरी छाप छोड़ती हैं। 2014 तक खाप का समर्थन जीत की गारंटी माना जाता था, लेकिन तब यह प्रभाव कमजोर हुआ। हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनावों के बाद खापों का राजनीतिक प्रभाव फिर से उभर कर सामने आया है, और 2024 के विधानसभा चुनावों में इसे नजरअंदाज करना मुश्किल हो रहा है।
क्या है खाप और उनका महत्त्व?
खाप पंचायतें किसी विशेष गोत्र या समुदाय का प्रतिनिधित्व करती हैं। खाप, कई गांवों और समुदायों को एक साथ लाकर एक न्याय प्रणाली की तरह काम करती है। ये पंचायतें न केवल सामाजिक और सांस्कृतिक मामलों में, बल्कि राजनीतिक मुद्दों पर भी निर्णय लेती हैं। जब किसी महत्वपूर्ण निर्णय की बात होती है, तो सभी खाप पंचायतें मिलकर सर्वखाप का गठन करती हैं, जिसका निर्णय सभी को मान्य होता है।
हरियाणा में खाप पॉलिटिक्स की प्रासंगिकता
हरियाणा जाट बाहुल्य राज्य है, जहां करीब 120 से अधिक खाप हैं। इनमें से कुछ प्रमुख खाप हैं:
- सर्व खाप
- महम चौबीसी
- फोगाट खाप
- सांगवान खाप
- कंडेला खाप
- गठवाला मलिक खाप
खाप पंचायतों का प्रभाव हरियाणा की राजनीति में खासकर ग्रामीण इलाकों में देखा जाता है। जब चुनाव आते हैं, तो खापें अपने समर्थित उम्मीदवारों के पक्ष में सामूहिक वोटिंग का आह्वान करती हैं, जिससे चुनावी नतीजों पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
प्रमुख खाप और उनके प्रमुख चेहरे
हरियाणा की राजनीति में खापों के कुछ प्रमुख चेहरे हैं, जिनकी चुनावी मैदान में गहरी पकड़ है:
- कंडेला खाप के प्रमुख धर्मपाल कंडेला हैं, जिनका प्रभाव खासकर जींद विधानसभा क्षेत्र में है।
- फोगाट खाप के प्रमुख बलवंत नंबरदार का नाम भी राजनीति में काफी प्रभावशाली रहा है।
- सांगवान खाप के सोमवीर सांगवान चरखी दादरी सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरे और बीजेपी की बबिता फोगाट को हरा चुके हैं।
खाप का राजनीतिक प्रभाव और चुनौतियां
2014 से पहले हरियाणा की राजनीति में खाप पंचायतों का समर्थन जीत की गारंटी माना जाता था। खापों ने कई चुनावों में निर्णायक भूमिका निभाई है। लेकिन 2014 के चुनावों में कांग्रेस की हार ने इस पर सवाल खड़े कर दिए थे। तब खापों ने कांग्रेस के पक्ष में समर्थन दिया था, लेकिन चुनावी नतीजे कांग्रेस के खिलाफ गए। इसके बाद से खाप पॉलिटिक्स को लेकर नए समीकरण बनने लगे।
हालांकि, 2019 के विधानसभा चुनावों में खापों ने एक बार फिर से अपना असर दिखाया। सांगवान खाप के प्रमुख सोमवीर सांगवान ने बीजेपी उम्मीदवार बबिता फोगाट को हराया और निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में विजयी रहे। खापों के समर्थन ने बीजेपी को चुनौती दी और कई सीटों पर उनके विरोध ने सत्तारूढ़ दल के लिए मुश्किलें खड़ी कर दीं।
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किसका बिगड़ेगा चुनावी खेल?
2024 के हरियाणा विधानसभा चुनावों में खाप नेताओं की चुनावी एंट्री ने सियासी दलों के लिए चुनौती बढ़ा दी है। अहलावत खाप से सोनू अहलावत को आम आदमी पार्टी ने बेरी सीट से मैदान में उतारा है। वहीं, आजाद पालवा जैसे नेता भी खाप से जुड़े हुए हैं, जिनकी चुनावी मौजूदगी से जाट वोट बैंक प्रभावित हो सकता है।
खाप पंचायतों का वोट बंटने से सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को हो सकता है, क्योंकि जाट वोट बैंक के बंटने से कांग्रेस की स्थिति कमजोर हो सकती है। लोकसभा चुनावों में खापों ने बीजेपी के खिलाफ मतदान का आह्वान किया था, जिससे बीजेपी की सीटों पर असर पड़ा।
खाप पॉलिटिक्स का भविष्य
हरियाणा की राजनीति में खापों का प्रभाव धीरे-धीरे फिर से बढ़ रहा है। हाल ही में हुए घटनाक्रमों से यह स्पष्ट हो गया है कि 2024 के विधानसभा चुनावों में खाप पंचायतें निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं। चुनावी मैदान में खाप नेताओं की मौजूदगी सियासी दलों के लिए टेंशन का कारण बनी हुई है।
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