मध्यप्रदेश : अब संघ के हाथ में है भाजपा की नियति.
पिछले कुछ दिनों से कार्यकर्ता की नाराजगी की खबरों को संघ ने अब गंभीर रूप से लेना शुरू कर दिया है। इस नाराजगी के अलावा नेताओं के गुटों में बंट चुकी बीजेपी का मध्यप्रदेश में हाल-बेहाल है। हालाँकि इन मुद्दों को नजरअंदाज ना करते हुए संघ ने प्रदेश में पैरलल काम शुरू कर दिया है, जिसका असर उस वक्त दिखेगा जब पार्टी टिकट बांटने का काम शुरू करेगी. यह भी मुमकिन हो सकता है कि मुख्यमंत्री खुद अपने चहेते उम्मीदवारों को टिकट ना दिलवा सकें और यह भी संभव है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के खास दावेदार भी टिकट से दूर कर दिए जाएं। इस चर्चा का डर बीजेपी हलकों में नजर भी आने लगा है। प्रदेश में बीजेपी की बुरी स्थिति को भांपकर आलाकमान ने पहली बार इस तरह का सख्त कदम उठाया है।
चुनाव नजदीक आतेही टिकट वितरण से पहले सर्वे कराना, तो टिकट के दावेदारों की भीड़ जुटना आम प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में अक्सर वो नेता बाजी मारते हैं जो सर्वे में अच्छी रिपोर्ट तो हासिल करते ही हैं साथ ही दिग्गज नेताओं के करीबी भी होते हैं।
लेकिन इस बार मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में बड़े नेताओं से करीबी रखते वाले कोई खास कमाल नहीं दिखाने वाले है. क्योंकि इस बार सत्ता की नहीं संघ की रिपोर्ट पर फाइनल फैसला होगा। जिसे तैयार करने के लिए संघ का सबसे विश्वासपात्र सिपहसालार मैदान में उतर चुका है। ये सिपहसालार हैं क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल। जिनकी रिपोर्ट के आगे शिवराज सिंह चौहान, ज्योतिरादित्य सिंधिया, वीडी शर्मा और नरोत्तम मिश्रा सरीखे दिग्गज नेताओं के दावे और सिफारिशें धरी रह जाएंगी। जामवाल के काम करने का तरीका अलग है। संगठन को मजबूत करने की अपनी शैली के साथ जामवाल मैदान में उतर चुके हैं, जिसकी वजह से बीजेपी के दिग्गजों में भी खलबली मची हुई है।